सोमवंशी_राजपूतो_की_गौरवशाली_इतिहास
हिन्दू शेरनी मनीषा सिंह
मनीषा सिंह की कलम से राजपूतो की गौरवशाली इतिहास जिसे पढ़कर हर हिन्दू को गर्व होगा ।
आजकल कोई भी सड़कछाप इतिहासकार उठकर अपने नाम के पीछे आर्य लगा कर खुद को भगवान के स्थान पर बैठाते हैं अथवा यह भी कह सकते हैं स्वयंघोषित भगवान बनकर वर्ण का अर्थ बदल कर रख दिए हैं क्षत्रिय अर्थात राजपूत ही होते हैं ऐसा मैं नही रामायण से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता , पुराण, इत्यादि सभी में क्षत्रिय का अर्थ ही राजपूत ( उपभ्रांश राजपुत्र) बताया गया हैं आजकल स्वयंघोषित भगवान लोग क्या कर रहे हैं ब्लॉगर एवं वेबसाइट पर कुछ भैंस चोरो की प्रजाति एवं घोला जाती को क्षत्रिय बताते हैं और यह बताते हैं राजपूत अभी जन्म लिया हैं राजपूतो की अस्तित्व ११०० ईस्वी के बाद आया हैं ।
यह इतिहासकार वामपंथी इतिहासकारों से भी ज्यादा खतरनाक हैं जो कभी भैंस चुराया करते थे आज वोह हमारे इतिहास को चुरा रहे हैं और अपना बता रहे हैं और इसमें ऐसे इतिहासकारों की भरपूर सहायता मिल रही हैं । हूणों के बीज से जन्म लिए गये भैंस चोर प्रजाति आज खुद को क्षत्रिय बताने में लगे हैं ।
#सोमवंशी_राजपूतो_की_गौरवशाली_इतिहास
किरात वंश का अंतिम राजा गश्ती ने ललितापट्टान के किले से #राजपूत दिग्विजयी महाराज निमिषा को जब गोदावरी नदी के तट पर भूतोच्छा नामक किले का निर्माण करते देख, ललितापट्टान के किले के गुप्त मार्ग से गश्ती ने पलायन किया और इस वजह से अपना साम्राज्य खो दिया एवं सोमवंशी राजपूतो का शासनकाल स्थापितं हुआ ललितापट्टान (नेपाल काराज्य का नाम था ललितापट्टान) पर सन 2319 ईस्वी पूर्व से राजपूतों की शक्ति एवं पराक्रम की डंका पुरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही थी ।।
इसके बाद किम्पुरुष (वर्त्तमान नेपाल) पर राजपूतों का आधिपत्य स्थापित हुआ एवं इस बात का प्रमाण हैं दो विशाल किला जो राजपुताना की वैभव एवं शौर्यता की इतिहास बताते हैं संकामुला थिर्था नामक किला एवं भूतोच्छा का क़िला ।
महाराज निमिषा ने ४८ (48) वर्ष तक राज किया ।
महाराज निमिषा से लेकर सोमवंशी राजपूत के 12 राजाओं ने 607 वर्ष तक भारतवर्ष पर राज किया ।
सोमवंशी राजपूत महाराजा निमिषा 41वे (इक्तालिशवे) राजा थे इनके पूर्वजो की वंशावली के अभिलेखों को मिटा दिया गया हैं इतिहासबिदुर पंडित कोटा वेंकटाचेलाम जी के सार्थक प्रयास से यह संभव हो पाया की मिटाये गए राजपूत राजाओं के इतिहास को आपके समक्ष उपस्थित कर पा रही हूँ ।
सोमवंशी राजा किम्पुरुष (वर्त्तमान नेपाल) से लेकर कौरव्य (वर्त्तमान कोरिया एवं संपूर्ण भारतवर्ष पर शासन किये थे )
सोमवंशी राजपूतों की वंशावली -:
41. महाराज निमिषा - २३१९-२२६७ ईस्वी पूर्व (2319-2267 B.C)
42. निमिषा के पुत्र महाराज मानक्शा - २२६७-२२१५ ईस्वी पूर्व (2267-2215 B.C)
43. महाराज मानक्शा के पुत्र काकवर्मन- २२१५-२१६३ ईस्वी पूर्व (2215-2163 B.C)
इसके बाद 44 से 48 पीढ़ी की राजाओ का नाम को इतिहास से डॉ. बुहलर यूरोपियन इतिहासकार द्वारा मिटा दिया गया पांच पीढ़ियों के राजाओं का अभिलेख मिटा दिया गया हैं ।
इसके बाद सोमवंशी राजपूत राजा पसुप्रेक्षा देव का शासनकाल आरम्भ होता है सन १९०७ से १८५५ ईस्वी पूर्व (1907-1855 B.C) यह अड़तालीस पीढ़ी के राजा का पुत्र थे राजा प्रसुप्रेक्षा देवा भारतवर्ष एवं किम्पुरुष दो राज्य के मध्य व्यवसायिक एवं बानिर्जिक संपर्क के साथ साथ विवाह सम्बन्ध भी स्थापित किया जिस करण कई राज्य पर महाराज प्रसुपेक्षा के शासन स्थापित हुए ।
महाराजा भास्करवर्मन सोमवंशी राजपूत के चौथी पीढ़ी का 52nd (बावनवे ) राजा थे किम्पुरुष (वर्त्तमान नेपाल) सन १७६० से १७१२ (1760-1712 B.C) जिन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष पर राज किया ।
(Bhaskarvarman conquered the whole of India . Being childless he adopted the first ruler of the Suryavamsi dynasty Bhumivarman who was crowned king in 1389 Kali or 1712 B.C) Reference Nepal History Author Pandit Kota Venkatchelam Page-: 54 and 78
महाराज भास्करवर्मन सोमवंशी राजपूत की चौथी पीढ़ी का राजा था भास्करवर्मन ने भारतवर्ष के भूमि से लेकर समंदर तक शासन किया एवं कौरव्य (कोरिया) तक विजय प्राप्त कर दिग्विजयी सम्राट बने इन्होने एवं इनके कोई पुत्र नही हुए इन्होने सूर्यवंशी राजपुत्र भूमिवर्मन सूर्यवंशी को दत्तक पुत्र (गोद लिए) भास्करवर्मन के बाद भूमिवर्मन सूर्यवंशी राजा हुए जिन्होंने नेपाल के सूर्यवंशी पीढ़ी की स्थापना किया एवं भूमिवर्मन ने 67 वर्ष तक राज किया 1712 - 1645 ईस्वी पूर्व तक शासन किया इनका शासनकल के बारे में अगली पोस्ट पर जानेंगे ।
संदर्भ-:
१) Bharatam Sabha Parva 32 chapter
२) Epochs of Bharata Varsha by Jagadguru Sri Kalyananda Bharati
३) Reference Nepal History Author Pandit Kota Venkatchelam
४) The Indian Antiquary Vol: XIII Page -: 411
५) Mahapadhyaya and Kalaprapurna Author Ch. Narayana Rao
मनीषा सिंह की कलम से राजपूतो की गौरवशाली इतिहास जिसे पढ़कर हर हिन्दू को गर्व होगा ।
आजकल कोई भी सड़कछाप इतिहासकार उठकर अपने नाम के पीछे आर्य लगा कर खुद को भगवान के स्थान पर बैठाते हैं अथवा यह भी कह सकते हैं स्वयंघोषित भगवान बनकर वर्ण का अर्थ बदल कर रख दिए हैं क्षत्रिय अर्थात राजपूत ही होते हैं ऐसा मैं नही रामायण से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता , पुराण, इत्यादि सभी में क्षत्रिय का अर्थ ही राजपूत ( उपभ्रांश राजपुत्र) बताया गया हैं आजकल स्वयंघोषित भगवान लोग क्या कर रहे हैं ब्लॉगर एवं वेबसाइट पर कुछ भैंस चोरो की प्रजाति एवं घोला जाती को क्षत्रिय बताते हैं और यह बताते हैं राजपूत अभी जन्म लिया हैं राजपूतो की अस्तित्व ११०० ईस्वी के बाद आया हैं ।
यह इतिहासकार वामपंथी इतिहासकारों से भी ज्यादा खतरनाक हैं जो कभी भैंस चुराया करते थे आज वोह हमारे इतिहास को चुरा रहे हैं और अपना बता रहे हैं और इसमें ऐसे इतिहासकारों की भरपूर सहायता मिल रही हैं । हूणों के बीज से जन्म लिए गये भैंस चोर प्रजाति आज खुद को क्षत्रिय बताने में लगे हैं ।
#सोमवंशी_राजपूतो_की_गौरवशाली_इतिहास
किरात वंश का अंतिम राजा गश्ती ने ललितापट्टान के किले से #राजपूत दिग्विजयी महाराज निमिषा को जब गोदावरी नदी के तट पर भूतोच्छा नामक किले का निर्माण करते देख, ललितापट्टान के किले के गुप्त मार्ग से गश्ती ने पलायन किया और इस वजह से अपना साम्राज्य खो दिया एवं सोमवंशी राजपूतो का शासनकाल स्थापितं हुआ ललितापट्टान (नेपाल काराज्य का नाम था ललितापट्टान) पर सन 2319 ईस्वी पूर्व से राजपूतों की शक्ति एवं पराक्रम की डंका पुरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही थी ।।
इसके बाद किम्पुरुष (वर्त्तमान नेपाल) पर राजपूतों का आधिपत्य स्थापित हुआ एवं इस बात का प्रमाण हैं दो विशाल किला जो राजपुताना की वैभव एवं शौर्यता की इतिहास बताते हैं संकामुला थिर्था नामक किला एवं भूतोच्छा का क़िला ।
महाराज निमिषा ने ४८ (48) वर्ष तक राज किया ।
महाराज निमिषा से लेकर सोमवंशी राजपूत के 12 राजाओं ने 607 वर्ष तक भारतवर्ष पर राज किया ।
सोमवंशी राजपूत महाराजा निमिषा 41वे (इक्तालिशवे) राजा थे इनके पूर्वजो की वंशावली के अभिलेखों को मिटा दिया गया हैं इतिहासबिदुर पंडित कोटा वेंकटाचेलाम जी के सार्थक प्रयास से यह संभव हो पाया की मिटाये गए राजपूत राजाओं के इतिहास को आपके समक्ष उपस्थित कर पा रही हूँ ।
सोमवंशी राजा किम्पुरुष (वर्त्तमान नेपाल) से लेकर कौरव्य (वर्त्तमान कोरिया एवं संपूर्ण भारतवर्ष पर शासन किये थे )
सोमवंशी राजपूतों की वंशावली -:
41. महाराज निमिषा - २३१९-२२६७ ईस्वी पूर्व (2319-2267 B.C)
42. निमिषा के पुत्र महाराज मानक्शा - २२६७-२२१५ ईस्वी पूर्व (2267-2215 B.C)
43. महाराज मानक्शा के पुत्र काकवर्मन- २२१५-२१६३ ईस्वी पूर्व (2215-2163 B.C)
इसके बाद 44 से 48 पीढ़ी की राजाओ का नाम को इतिहास से डॉ. बुहलर यूरोपियन इतिहासकार द्वारा मिटा दिया गया पांच पीढ़ियों के राजाओं का अभिलेख मिटा दिया गया हैं ।
इसके बाद सोमवंशी राजपूत राजा पसुप्रेक्षा देव का शासनकाल आरम्भ होता है सन १९०७ से १८५५ ईस्वी पूर्व (1907-1855 B.C) यह अड़तालीस पीढ़ी के राजा का पुत्र थे राजा प्रसुप्रेक्षा देवा भारतवर्ष एवं किम्पुरुष दो राज्य के मध्य व्यवसायिक एवं बानिर्जिक संपर्क के साथ साथ विवाह सम्बन्ध भी स्थापित किया जिस करण कई राज्य पर महाराज प्रसुपेक्षा के शासन स्थापित हुए ।
महाराजा भास्करवर्मन सोमवंशी राजपूत के चौथी पीढ़ी का 52nd (बावनवे ) राजा थे किम्पुरुष (वर्त्तमान नेपाल) सन १७६० से १७१२ (1760-1712 B.C) जिन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष पर राज किया ।
(Bhaskarvarman conquered the whole of India . Being childless he adopted the first ruler of the Suryavamsi dynasty Bhumivarman who was crowned king in 1389 Kali or 1712 B.C) Reference Nepal History Author Pandit Kota Venkatchelam Page-: 54 and 78
महाराज भास्करवर्मन सोमवंशी राजपूत की चौथी पीढ़ी का राजा था भास्करवर्मन ने भारतवर्ष के भूमि से लेकर समंदर तक शासन किया एवं कौरव्य (कोरिया) तक विजय प्राप्त कर दिग्विजयी सम्राट बने इन्होने एवं इनके कोई पुत्र नही हुए इन्होने सूर्यवंशी राजपुत्र भूमिवर्मन सूर्यवंशी को दत्तक पुत्र (गोद लिए) भास्करवर्मन के बाद भूमिवर्मन सूर्यवंशी राजा हुए जिन्होंने नेपाल के सूर्यवंशी पीढ़ी की स्थापना किया एवं भूमिवर्मन ने 67 वर्ष तक राज किया 1712 - 1645 ईस्वी पूर्व तक शासन किया इनका शासनकल के बारे में अगली पोस्ट पर जानेंगे ।
संदर्भ-:
१) Bharatam Sabha Parva 32 chapter
२) Epochs of Bharata Varsha by Jagadguru Sri Kalyananda Bharati
३) Reference Nepal History Author Pandit Kota Venkatchelam
४) The Indian Antiquary Vol: XIII Page -: 411
५) Mahapadhyaya and Kalaprapurna Author Ch. Narayana Rao
मुगलों को अपनी बेटियां बेचने वालो का इतिहास केवल दूसरो को इतिहास चुराकर ही बनाया जा सकता है। उनका खुद का कुछ नहीं है
ReplyDeleteऔर राजपूत का अर्थ राजा का नाजायज पुत्र होता है, राजा का वैध पुत्र राजकुमार होता है।
मुग़ल-राजपूत वैवाहिक संबंधों पर एक नजर
– जनवरी 1562- राजा भारमल की बेटी से अकबर की शादी (कछवाहा-अंबेर)
– 15 नवंबर 1570- राय कल्याण सिंह की भतीजी से अकबर की शादी (राठौर-बीकानेर)
– 1570- मालदेव की बेटी रुक्मावती का अकबर से विवाह (राठौर-जोधपुर)
– 1573 – नगरकोट के राजा जयचंद की बेटी से अकबर की शादी (नगरकोट)
– मार्च 1577- डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)
– 1581- केशवदास की बेटी की अकबर से शादी (राठौर-मोरता)
– 16 फरवरी, 1584- भगवंत दास की बेटी से राजकुमार सलीम (जहांगीर) की शादी (कछवाहा-आंबेर)
– 1587- जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से जहांगीर का विवाह (राठौर-जोधपुर)
– 2 अक्टूबर 1595- रायमल की बेटी से अकबर के बेटे दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)
– 28 मई 1608- राजा जगत सिंह की बेटी से जहांगीर की शादी (कछवाहा-आंबेर)
– 1 फरवरी, 1609- रामचंद्र बुंदेला की बेटी से जहांगीर का विवाह (बुंदेला, ओरछा)
– अप्रैल 1624- राजा गजसिंह की बहन से जहांगीर के बेटे राजकुमार परवेज की शादी (राठौर-जोधपुर)
– 1654- राजा अमर सिंह की बेटी से दाराशिकोह के बेटे सुलेमान की शादी (राठौर-नागौर)
– 17 नवंबर 1661- किशनगढ़ के राजा रूपसिंह राठौर की बेटी से औरंगज़ेब के बेटे मो. मुअज़्ज़म की शादी (राठौर-किशनगढ़)
– 5 जुलाई 1678- राजा जयसिंह के बेटे कीरत सिंह की बेटी से औरंगज़ेब के बेटे मो. आज़म की शादी (कछवाहा-आंबेर)
– 30 जुलाई 1681- अमरचंद की बेटी औरंगज़ेब के बेटे कामबख्श की शादी (शेखावत-मनोहरपुर)
जो क्षत्रिय खुद को मानते हैं वे अपने आपको सीधा राजपूत से जोड़ कर देखने लगते है , उन्हे लगता है कि जो राजपूत नहीं वह क्षत्रिय नहीं। वैसे तो पुराणों मे राजपूत शब्द कहीं है नहीं परन्तु कुछ पुराण जो 8 वी शताब्दी बाद लिखे भी गए हैं तो उनमें राजपूत शब्द के लिए नकारात्मकता ही भरी पड़ी है, ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण, और कूर्म पुराण में मिलता है । ब्रह्मववर्त और स्कंद पुराण में राजपूत को राजा की अवैधानिक ( नाजायज) पुत्र बोला गया है । वैसे भी राजा का वैध पुत्र राजकुमार कहलाता है राजपूत नहीं। बात करते है कूर्म पुराण की तो राजपुत्र वंश की उत्पत्ति सूर्यवंशी ( इक्ष्वाकवंशीय ) राजा त्रिधनवा से हुई थी । फिर ये चंद्रवंशी, यदुवंशी, अग्निवंशी, और नागवंशी राजपूत कहा से आ जाते है?
चूतियां कहीं की झांट भर का इतिहास पता नहीं , बक्चोदी दुनिया भर की
चुटिया tu kon hai
DeleteBhimta randi ka aulaad
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